ब्रह्म मुहूर्त में जागिए
सुप्रभात साथियो!... गुड मॉर्निंग ज़िंदगी...
इन दिनों वाट्सऐप, टेलीग्राम, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया के मंचों पर गुड मॉर्निंग संदेशों की बाढ़-सी लगी रहती है. पर सवाल उठता है कि हम अपनी ‘मॉर्निंग’ को ‘गुड’ बनाने के लिए क्या किसी तरह की कोशिश करते हैं? सही बात तो यह है कि महानगरों में अधिकांश लोगों की सुबह ही गड़बड़ होती है और यह गड़बड़ी दिन भर धीरे-धीरे बढ़ती जाती है. अगर हम अपनी सुबह को थोड़ा-सा सहेज लें, तो हमारा पूरा दिन अच्छा बीतेगा.
हरजीत का एक शेर है-
वक्त के साथ चलनेवाले तो
उम्र की बात ही नहीं करते
वक्त के साथ चलने की कला से परिचित कराने में ‘फादर आॅफ अमेरिका’ कहे जानेवाले प्रख्यात आविष्कारक, राजनीतिज्ञ तथा दार्शनिक बेंजामिन फ्रैंकलिन की यह कहानी भी मददगार होगी-
एक दिन बेंजामिन फ्रैंकलिन की फिलाडेल्फिया स्थित किताबों की दुकान में एक ग्राहक किताब खरीदने आया. दुकान में काम करनेवाले व्यक्ति से उसने एक किताब की कीमत पूछी. कर्मचारी ने किताब की कीमत एक डॉलर बताई. ग्राहक किताब की कीमत कम करने के लिए मोलभाव करने लगा. वह काफी देर तक किताब की कीमत कम करवाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो उसने फ्रैंकलिन से मिलने का आग्रह किया. कर्मचारी ने दुकान के भीतर बैठे फ्रैंकलिन को सारी बात बताई. फ्रैंकलिन ग्राहक के पास आए.
ग्राहक ने फ्रैंकलिन से कहा, ‘‘सर, यह किताब कम से कम कितने में मिल सकती है?’’
फ्रैंकलिन ने कहा, ‘‘सवा डॉलर में.’’
हैरान होकर ग्राहक ने कहा, ‘‘ लेकिन आपका कर्मचारी तो अभी इसकी कीमत एक डॉलर बता रहा था!’’
फ्रैंकलिन बोले, ‘‘आप सही कह रहे हैं, लेकिन अतिरिक्त चौथाई डॉलर मेरे उस समय का मूल्य है, जो यहां आने और आपसे बातचीत में खर्च हुआ है.’’
ग्राहक ने खीझते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अब यह बताओ कि मुझे यह किताब कितने में मिल जाएगी?’’
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने धीर-गंभीर मुद्रा में कहा -- ‘‘अब तो यह किताब आपको डेढ़ डॉलर में मिलेगी, जितनी देर करोगे, कीमत उतनी ही बढ़ती जाएगी.’’
ग्राहक को वह किताब बहुत पसंद आ गई थी. वह हर हाल में उस किताब को खरीदना चाहता था. आखिरकार उसने मन मारकर एक डॉलर की उस किताब को डेढ़ डॉलर में खरीद लिया.
जब ग्राहक दुकान से बाहर जाने लगा, तो फ्रैंकलिन ने उससे किताब लेकर किताब के अंदर के एक खाली पन्ने पर कुछ लिख दिया और फौरन दुकान के भीतर चले गए.
ग्राहक ने देखा, फ्रैंकलिन ने लिखा था -- ‘ ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है. आप रुक सकते हैं, लेकिन समय आपके लिए नहीं रुकता. खोया समय कभी वापस नहीं आता.’
एक डॉलर की किताब के लिए डेढ़ डॉलर देकर झल्लाए ग्राहक के चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान फैल गई. उसने अभी-अभी संसार का सबसे बेहतर निवेश किया था और लगे हाथ समय का मूल्य भी समझ गया था.
... तो साथियो! यदि आप अपनी मॉर्निंग को गुड बनाना चाहते हैं, आप चाहते हैं कि आपके जीवन की हर सुबह ‘शुभ प्रभात’ हो, तो सबसे पहले आपको समय का ध्यान रखना पड़ेगा. बेहतर सुबह चाहिए, तो ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर से उठ जाइए.
ब्रह्म मुहूर्त का समय शारीरिक, यौगिक व मानसिक क्रियाओं जैसे ध्यान, योगाभ्यास, ईश्वर उपा विद्याध्ययन, मनन-चिंतन आदि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि इस समय के शांत एवं वातावरण में मस्तिष्क के एकाग्रता से कार्य करने के सुखद परिणाम मिलते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त प्रात: चार बजे से साढ़े पांच बजे तक का समय होता है. भोर के इस क्षण में नए दिन की, नए जीवन की शुरुआत होती है. इसी समय संसार की लीला शुरू होती है. इसी समय संसार के अधिकांश ज्ञानी और सुधीजन ध्यान-प्रार्थना में लीन होते हैं. ऐसे समय में ध्यान-प्रार्थना करने पर आपकी हृदय तरंगों का उनकी चेतन तरंगों से मेल होने की संभावना बढ़ जाती है. ब्रह्म मुहूर्त में शुरू संसार की लीला सांझ होते-होते अपने शिखर को छू लेती है और वहां से फिर रात्रि के विश्राम की ओर बढ़ती है. ब्रह्म मुहूर्त में ऊर्जा का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है.
ब्रह्म मुहूर्त में हमारे संपर्क के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है. ऐसा अनुमान है कि इस समय वातावरण में 41 प्रतिशत ऑक्सीजन, 55 प्रतिशत नाइट्रोजन और 4 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड होती है. सूरज के प्रखर होने के साथ-साथ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जाती है.
ब्रह्म मुहूर्त शब्द की उत्पत्ति ज्ञान की देवी ब्रह्मी यानी सरस्वती से हुई है. प्राचीनकाल में आश्रमों में इसी समय अध्ययन आरंभ होता था. आचार-संहिताओं या नित्यकर्म पद्धतियों के शास्त्रों में कहा गया है कि एक घड़ी में २४ मिनट होते हैं और एक मुहूर्त दो घड़ी अर्थात 48 मिनट का होता है. पंद्रह मुहूर्त का एक दिन और पंद्रह मुहूर्त की एक रात होती है. वैसे तो प्रात: 4:24 से 5:12 बजे तक का समय ब्रह्म मुहूर्त बताया गया है, लेकिन अधिकांश साधक भोर में तीन मुहूर्त यानी 3:34 से 4:36 तक को ब्रह्म मुहूर्त मानते हैं. सूर्योदय से तीन मुहूर्त का ‘प्रात: काल’ फिर तीन मुहूर्त का ‘संगवकाल’, फिर तीन मुहूर्त का ‘मध्याह्नकाल’, फिर तीन मुहूर्त का ‘अपराह्नकाल’और उसके बाद तीन मुहूर्त का ‘सायाह्नकाल’ माना गया है.
मनुष्य को चाहिए कि वह स्नान आदि से शुद्ध होकर पूर्वाह्न में देवता संबंधी कार्य (दान आदि), मध्याह्न में मनुष्य संबंधी कार्य और अपराह्न में पितर संबंधी कार्य करे. असमय में किया हुआ दान राक्षसों का भाग माना गया है. (पूर्वाह्न देवताओं का, मध्याह्न मनुष्यों का, अपराह्न पितरों का और सायाह्न राक्षसों का समय माना गया है.)
ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने प्रतिदिन संध्योपासन करके ही लंबी आयु प्राप्त की थी. इसलिए सदा मौन रहकर द्विजमात्र को प्रतिदिन तीन समय संध्या करनी चाहिए. संध्या का अर्थ होता है संधिकाल यानी रात का दिन से और दिन का रात से मिलने का समय. प्रात: काल की संध्या आसमान में तारों के रहते, मध्याह्न की यानी दोपहर की संध्या सूर्य के मध्य आकाश में रहने पर और सायंकाल की संध्या सूर्य के पश्चिम दिशा में चले जाने पर करनी चाहिए.
मल मूत्र का त्याग, दातुन, स्नान, शृंगार, बाल संवारना, अंजन लगाना, दर्पण में मुख देखना और देवताओं का पूजन-ये सब कार्य पूर्वाह्न में करने चाहिए.
क्या कहते हैं शास्त्र:
ऋग्वेद में कहा गया है --
प्रातारत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान्प्रतिगृह्यनिधत्ते।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर: ॥ (ॠग्वेद 1/125/1)
(प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठने वाले को उत्तम स्वास्थ्य रत्न की प्राप्ति होती है, इसलिए बुद्धिमान उस समय को व्यर्थ नहीं खोते. प्रात: जल्दी उठनेवाला पुष्ट, स्वस्थ, बलवान, सुखी, दीर्घायु और वीर होता है.)
सामवेद में कहा गया है --
यथ सूर उदितोऽनागा मित्रोअर्यमा।
सुवाति सविता भग: ।। (सामवेद 35)
(मनुष्य को प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व शौच व स्नान से निवृत्त होकर ईश्वर की उपासना करनी चाहिए. सूर्योदय से पूर्व की शुद्ध व निर्मल वायु के सेवन से स्वास्थ्य और संपदा की वृद्धि होती है.)
अथर्ववेद में कहा गया है --
उद्यन्तसूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे । (अथर्ववेद 7/16/2)
(सूर्योदय तक भी जो नहीं जागते, इनका तेज नष्ट हो जाता है.)
महाभारत के शांतिपर्व में लिखा है --
न च सूर्योदये स्वपेत्।
(सूर्य उदय हो जाने पर सोए नहीं रहना चाहिए.)
बिस्तर से उठने का तरीका:
‘बृहद् नित्यकर्म पद्धति’ में बिस्तर से उठने का तरीका बताया गया है-- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए अपने हाथ देखें--
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम ।। (आचारप्रदीप)
(हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा का निवास है. अत: सुबह उठते ही हाथों का दर्शन करें.
इसके बाद जमीन पर कदम रखने से पहले नीची लिखी प्रार्थना करें--
समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ।।
(हे विष्णुपत्नि! हे समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करनेवाली! तथा पर्वतरूप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवि! तुम्हें नमस्कार है, मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो।)
ताकि दिन भर बनी रहे ताजगी
सुबह जल्दी उठना दिन भर की ताजगी के लिए मददगार होता है. आप जल्दी उठते हैं, तो ज्यादा ऊर्जावान रहते हैं. इससे आपकी काम करने की गति बढ़ती है. कम समय में अधिक काम कर लेते हैं. आप के पास काफी खाली समय भी बचता है. अगले लेख में इस पर विस्तृत चर्चा करेंगे कि आप अपने दिन की शुरुआत कैसे करें. तब तक के लिए नमस्कार!
Very Nice story
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