रिपोर्ट@डेली ज़िंदगी.कॉम
भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ माना जाता है. चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुढी पाडवा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है. इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होने के कारण इसे नवसंवत्सर भी कहते हैं.
ऐसी किवदंती है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया. इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ. कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई. बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ियां) फहराए. आज भी घर के आंगन में गुढी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है. इसीलिए इस दिन को गुढी पाडवा नाम दिया गया. गुढी पाडवा शब्द में गुढी का अर्थ विजय-पताका होता है और पाडवा प्रतिपदा को कहा जाता है.
सृष्टि निर्माण से संबंध
शास्त्रों में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था. दरअसल चैत्र महीने में ही वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं. शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है. जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है. इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है. इसीलिए इस दिन को वर्षारम्भ माना जाता है. आज भी भारत में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं.
बंदनवार से घरों में बहार
गुढी पाडवा के दिन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है. सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं. यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है. इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. प्रकृति नया रूप धर लेती है. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है. मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है.
हिंदू पंचांग का आरंभ
गुढी पाडवा से हिंदू पंचांग का आरंभ भी होता है. युगादि (उगादि) के दिन ही पंचांग तैयार होता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की. नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार दुगार्पूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम और सीता के विवाह के साथ सम्पन्न होता है. ऐसी मान्यता है कि हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं.
घरों में उत्सव का माहौल
इस अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में पच्चड़ी (प्रसादम) तीर्थ के रूप में बांटा जाता है. कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है. चर्म रोग भी दूर होता है. वहीं महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है. इसे गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम आदि मिलाकर तैयार किया जाता है. गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसी दिन से आम खाया जाता है. गुढी पाडवा के दिन नीम की पत्तियां खाने का भी विधान है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर नीम की कोपलें खाकर गुड़ खाया जाता है. इसे कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है.
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